यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।


पिता का अपने साथ शिशु को नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना और बच्चे का आईने में अपना चेहरा निहारना, माथे पर तिलक लगाना फिर कंधे पर बैठाकर गंगा तक ले जाना और लौटते समय पेड़ पर बैठाकर झूला झुलाना, कितना मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है।

इससे बच्चे और उसके पिता के बीच के करीबी और एक मित्र की तरह प्रगाढ़ संबंध का पता चलता है|


पिता के साथ कुश्ती लड़ना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाना, बच्चे के गालों का चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा मूँछें पकड़ने पर बनावटी रेाना रोने का नाटक और शिशु का अचानक से हँस पड़ना अत्यंत जीवंत लगता है। इससे हमें भी अपने बचपन की याद आ जाती है कितने मनोहारी थे बचपन के वे दिन जब हम छोटे थे| किस प्रकार से माता पिता का अटूट स्नेह हमें मिलता था|


माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खाना खिलाने की कोशिश, उबटना, शिशु का श्रृंगार करना और शिशु का सिसकना| बच्चे का अपने मित्रों की टोली को देख अचानक सिसकना बंद कर देना और बच्चों के समूह के साथ खेल-कूद में व्यस्त हो जाना| ये सभी दृश्य बचपन की याद दिलाते हैं।


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